गुनाहों का देवता
एक रचना पड़कर अगर ऐसा लगे की मुझे यह पहले क्यों नहीं मिली तो क्या यह कुछ ऐसा ही नहीं होता जैसे एक नायक को अपनी नायिका या एक प्रेमी को अपनी प्रेयसी से मिलने से पहले लगता होगा। "गुनाहों का देवता" कुछ ऐसी ही एक रचना है जिसमे रिश्तों और भावनाओं का एक ऐसा समन्यवय है जो तात्कालीनिक होते हुए भी सम्कालिनिक ही लगता है। सच मानिये मैं हिंदी या गैर हिंदी साहित्य मे ऐसा बहुत कुछ नहीं पड़ा है जो "गुनाहों का देवता" के धरातल पर ही मैं पा सकूं । "Wuthering Heights" शायद वहीँ कहीं अवश्य ही होगी । दोनों के बीच की समानतायें और भिन्नतायेन शायद एक दुसरे लेख के लिए एक उचित विषय है। इस लेख मैं मैं सिर्फ "गुनाहों ... " की ही बात कर सकूं तो मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी । यह विकल्प मेरे पास है की मैं इस लेख को दिल की बजे दिमाग से लिखूं पर ऐसी मेरी मंशा कटाई नहीं है ।
सच मानिये मैं इस लेख के माध्यम से पुस्तक की विवेचना या विश्लेषण करने की चेष्टा भी कतई नहीं कर रहा हूँ । पर ऐसा क्या है की मुझे यह रचना पहले नहीं मिली। और सच मानिये येही एक अभिव्यक्क्ति मेरे मन की टीस का कारण है । सुधा , चंदर , बिनती , पम्मी, गेसू , कैलाश - यह सभी मानिये मात्र व्यक्तित्व ही नहीं परन्तु "Greek Tragedies" के रोमन देवी देवता हैं , जो धरती पर हमें अपनी अन्तारात्मा का दर्शन स्वत: ही कराते हैं। प्रेम को परिभाषित करना कठिन ही नहीं नामुमकिन है, ऐसा यह रचना कहती लगती है। प्रेम का रूप ही विश्वरूपं है । प्रेम ही आदि है और प्रेम ही अंत है। प्रेम सागर भी है और प्रेम जीवन भी । प्रेम आकर्षण भी है और प्रेम वैराग्य भी । रचना के द्वारा जैसा संसार भारती जी ने दर्शाया है वह वास्तविक होते हुए भी आलोकिक है ।
यह कहना की कहानी दो प्रमुख शहरों - दिल्ली और अलाहाबाद के इर्द गिर्द घूमती है ठीक ही होगा। मौसमों का ऐसा सुन्दर प्रयोग और समन्वय , कहानी के साथ साथ पात्रों की चेतनाओं को भी आंदोलित करता है । यह भूलना कदाचित संभव नहीं है की जाने क्यों सुधा ठेठ गर्मी मैं गेराज मैं जाकर गाडी बनाने की असफल कोशिश करती है । चंदर की कुंठाओं को मेघों और वर्षा के साथ लेखक ने अत्यंत सुन्दर तरह से प्रस्तुत किया है । पम्मी के साथ उस आधार हीन सम्बन्ध का प्रारम्भ और अंत ना सिर्फ नाटकीय है परन्तु मानवीय भी । बुआजी और डॉक्टर साहेब ही दो ऐसे पात्र है (शायद इसलिए की परिपक्व हैं), जो मौसम से अत्याधिक प्रभावित नज़र नहीं आते । दिल्ली का रूप बहुत बदला बदला सा है । शायद इसलिए की दिल्ली को अंतिम यात्रा का आखरी पड़ाव बन्ना होगा । "Connaught Place", "India Gate", "न्यू डेल्ही रेलवे स्टेशन" सभी मृत समान नज़र आते हैं । पीर बाबा की मज़ार क्या पाठक को आने वाली घटनाओं का बोध नहीं करा देती । प्रयाग पावनता और संगम का चिन्ह है । अंतत: संगम औपचारिक भी है और आवशक भी । स्त्री और पुरुष समाज के नियमों से परे होकर भी परे नहीं हैं ।
शायद यह जानना ज़रूरी नहीं है की इस रचना का हिदी साहित्य जगत मैं क्या प्रभाव रहा । परन्तु यह जानना अत्यन आवश्यक है की आज इस रचना की संवेदनायें और पात्र हमारे बीच हैं या नहीं। यह मैं पाठकों पर छोड़ सकता हूँ । वे रचना को पड़ें और स्वयं ही निर्धारित करैं की "गुनाहों ..." क्या गुनाहों के बारे मैं है या देवता के बारे मैं । मुझे लगता है की विश्वविद्यालयों मैं इसका पाठन और पठान हर दृष्टि से ठीक है । मेरे लिए यह विचार अपार हर्ष और उल्लास का विषय होगा की एक ही कक्षा मैं "मेघदूत" और "गुनाहों ..." को पढ़ाया जा सके ।
सच मानिये मैं इस लेख के माध्यम से पुस्तक की विवेचना या विश्लेषण करने की चेष्टा भी कतई नहीं कर रहा हूँ । पर ऐसा क्या है की मुझे यह रचना पहले नहीं मिली। और सच मानिये येही एक अभिव्यक्क्ति मेरे मन की टीस का कारण है । सुधा , चंदर , बिनती , पम्मी, गेसू , कैलाश - यह सभी मानिये मात्र व्यक्तित्व ही नहीं परन्तु "Greek Tragedies" के रोमन देवी देवता हैं , जो धरती पर हमें अपनी अन्तारात्मा का दर्शन स्वत: ही कराते हैं। प्रेम को परिभाषित करना कठिन ही नहीं नामुमकिन है, ऐसा यह रचना कहती लगती है। प्रेम का रूप ही विश्वरूपं है । प्रेम ही आदि है और प्रेम ही अंत है। प्रेम सागर भी है और प्रेम जीवन भी । प्रेम आकर्षण भी है और प्रेम वैराग्य भी । रचना के द्वारा जैसा संसार भारती जी ने दर्शाया है वह वास्तविक होते हुए भी आलोकिक है ।
यह कहना की कहानी दो प्रमुख शहरों - दिल्ली और अलाहाबाद के इर्द गिर्द घूमती है ठीक ही होगा। मौसमों का ऐसा सुन्दर प्रयोग और समन्वय , कहानी के साथ साथ पात्रों की चेतनाओं को भी आंदोलित करता है । यह भूलना कदाचित संभव नहीं है की जाने क्यों सुधा ठेठ गर्मी मैं गेराज मैं जाकर गाडी बनाने की असफल कोशिश करती है । चंदर की कुंठाओं को मेघों और वर्षा के साथ लेखक ने अत्यंत सुन्दर तरह से प्रस्तुत किया है । पम्मी के साथ उस आधार हीन सम्बन्ध का प्रारम्भ और अंत ना सिर्फ नाटकीय है परन्तु मानवीय भी । बुआजी और डॉक्टर साहेब ही दो ऐसे पात्र है (शायद इसलिए की परिपक्व हैं), जो मौसम से अत्याधिक प्रभावित नज़र नहीं आते । दिल्ली का रूप बहुत बदला बदला सा है । शायद इसलिए की दिल्ली को अंतिम यात्रा का आखरी पड़ाव बन्ना होगा । "Connaught Place", "India Gate", "न्यू डेल्ही रेलवे स्टेशन" सभी मृत समान नज़र आते हैं । पीर बाबा की मज़ार क्या पाठक को आने वाली घटनाओं का बोध नहीं करा देती । प्रयाग पावनता और संगम का चिन्ह है । अंतत: संगम औपचारिक भी है और आवशक भी । स्त्री और पुरुष समाज के नियमों से परे होकर भी परे नहीं हैं ।
शायद यह जानना ज़रूरी नहीं है की इस रचना का हिदी साहित्य जगत मैं क्या प्रभाव रहा । परन्तु यह जानना अत्यन आवश्यक है की आज इस रचना की संवेदनायें और पात्र हमारे बीच हैं या नहीं। यह मैं पाठकों पर छोड़ सकता हूँ । वे रचना को पड़ें और स्वयं ही निर्धारित करैं की "गुनाहों ..." क्या गुनाहों के बारे मैं है या देवता के बारे मैं । मुझे लगता है की विश्वविद्यालयों मैं इसका पाठन और पठान हर दृष्टि से ठीक है । मेरे लिए यह विचार अपार हर्ष और उल्लास का विषय होगा की एक ही कक्षा मैं "मेघदूत" और "गुनाहों ..." को पढ़ाया जा सके ।