दया शंकर की दिअरी
आज शाम बारिश और खराब बारिश मैं दिल्ली की सड़कों पर जाते ही शंका थी की पता नहीं मेहनत सार्थक होगी या नहीं। साईं ऑडिटोरियम तक पहोंचने मैं कुछ वक़्त लगा; और प्ले था की शुरू होने का नाम ही नहीं ले रहा था। अन्ताथा प्ले शुरू हुआ और करीब करीब पूरे समय दर्शकों को बांधे रहा। आखिरी के १५ मिनेट कुछ पकड़ कमज़ोर रही पर उसका कारन स्क्रिप्ट ही है। आशीष विद्यार्थी, जैसी आशा थी उसके अनुरूप ही रहे - संवेदन शील और शक्तिशाली। इस सब के आलावा मजेदार रहा "सहयात्री" के साथ शाम ("संजोग" के बिना वोह भी ;-) ...
पारिवारिक पाठकों के लिए अर्थ समझना शायद मुश्किल नहीं होगा।
पारिवारिक पाठकों के लिए अर्थ समझना शायद मुश्किल नहीं होगा।
1 Comments:
umda entry ...
lage raho
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