सोमवार, फ़रवरी 08, 2010

दया शंकर की दिअरी

आज शाम बारिश और खराब बारिश मैं दिल्ली की सड़कों पर जाते ही शंका थी की पता नहीं मेहनत सार्थक होगी या नहीं। साईं ऑडिटोरियम तक पहोंचने मैं कुछ वक़्त लगा; और प्ले था की शुरू होने का नाम ही नहीं ले रहा था। अन्ताथा प्ले शुरू हुआ और करीब करीब पूरे समय दर्शकों को बांधे रहा। आखिरी के १५ मिनेट कुछ पकड़ कमज़ोर रही पर उसका कारन स्क्रिप्ट ही है। आशीष विद्यार्थी, जैसी आशा थी उसके अनुरूप ही रहे - संवेदन शील और शक्तिशाली। इस सब के आलावा मजेदार रहा "सहयात्री" के साथ शाम ("संजोग" के बिना वोह भी ;-) ...

पारिवारिक पाठकों के लिए अर्थ समझना शायद मुश्किल नहीं होगा।

1 Comments:

Blogger Mo said...

umda entry ...
lage raho

12:46 am  

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